जब भी माज़ी के नज़ारे को नज़र जाएगी
जब भी माज़ी के नज़ारे को नज़र जाएगी
शाम अश्कों के सितारों से सँवर जाएगी
क्या बताऊँ कि कहाँ तक ये नज़र जाएगी
एक दिन हद्द-ए-तअ'य्युन से गुज़र जाएगी
जब भी उस के रुख़-ए-रौशन का ख़याल आएगा
चाँदनी दिल के शबिस्ताँ में उतर जाएगी
हर सितम करने से पहले ये ज़रा सोच भी ले
मैं जो बिखरा तो तिरी ज़ुल्फ़ बिखर जाएगी
मैं ये समझूँगा मुझे मिल गई मेराज-ए-वफ़ा
ज़िंदगी गर तिरी यादों में गुज़र जाएगी
उस तरफ़ अपनी मोहब्बत की कहानी होगी
ये हवा बू-ए-वफ़ा ले के जिधर जाएगी
क्या ख़बर थी कि 'ज़फ़र' रूह मिरी दुनिया में
आरज़ूओं से कुचल कर कभी मर जाएगी
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