हर इक शय इश्तिहारी हो गई है
हर इक शय इश्तिहारी हो गई है
ये दुनिया कारोबारी हो गई है
मिरे दिल में जो थी वो बात अब तो
मिरे होंटों पे जारी हो गई है
सितम झेले हैं इतने आगही के
अजब हालत हमारी हो गई है
तिरी यादों के सदक़े वज्ह-ए-राहत
शब-ए-अख़्तर-शुमारी हो गई है
कई दिन से ये कैसी बे-ख़ुदी सी
दिल-ए-मुज़्तर पे तारी हो गई है
ये मुमकिन ही नहीं तन्हा रहूँ मैं
ग़म-ए-जानाँ से यारी हो गई है
ये तेरी आरज़ू तेरी तमन्ना
भला क्यूँ वज्ह-ए-ख़्वारी हो गई है
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