आप की मुझ पे जब भी नवाज़िश हुई
आप की मुझ पे जब भी नवाज़िश हुई
मुझ पे संग-ए-मलामत की बारिश हुई
ज़िंदगी भर रहेगी मुझे याद वो
इश्क़ में जो मिरी आज़माइश हुई
मेरा बचपन मुझे याद आने लगा
तितलियों की जहाँ भी नुमाइश हुई
मेरे दामन पे कीचड़ उछलता नहीं
क्या ख़बर क्या रक़ीबों में साज़िश हुई
झूट तो झूट था झूट ही वो रहा
बारहा सच बनाने की कोशिश हुई
ज़ुल्फ़ बिखराए वो बाम पर आ गए
जब सुहानी रुतों की सिफ़ारिश हुई
कितना बद-ज़ौक़ शहर-ए-ग़ज़ल है 'ज़फ़र'
बहरे गूँगे की हर सू सताइश हुई
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