तिरे फ़िराक़ में घुटनों चली है तन्हाई
तिरे फ़िराक़ में घुटनों चली है तन्हाई
ख़याल ओ ख़्वाब में फूली-फली है तन्हाई
तिरे ख़याल तिरे हिज्र के वसीले से
तसव्वुरात में हम से मिली है तन्हाई
जमाल-ए-यार में खोया हुआ है सन्नाटा
ख़याल-ए-यार में डूबी हुई है तन्हाई
किसी के शोख़ बदन की ज़रूरतों की तरह
तमाम रात सुलगती रही है तन्हाई
तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर का आसरा ले कर
हमारी फ़िक्र ओ नज़र में पली है तन्हाई
शब-ए-फ़िराक़ के मारे नहीं हो तुम पर्वाज़
तुम्हारी फ़िक्र पे क्यूँ जम गई है तन्हाई
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