ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद
अपने ही डंक से बिच्छू की तरह मर जाऊँ
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मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से
है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी
हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं
थक के पत्थर की तरह बैठा हूँ रस्ते में 'ज़फ़र'
मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा
जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है
ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से
ख़बर
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
सवाली