एक भी आफ़्ताब बन न सका
लाख टूटे हुए सितारों से
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Rahat Indori
Parveen Shakir
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क्या ढूँडने आए हो नज़र में
सवाली
वादी-ए-नील
है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी
वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन
आ मिरे चाँद रात सूनी है
उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं
मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा
हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं
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