है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

तेरा ग़म भी है मुझे और ग़म-ए-तन्हाई भी

दश्त-ए-वहशत में ब-जुज़-रेग-ए-रवाँ कोई नहीं

आज कल शहर में है लाला-ए-सहराई भी

मैं ज़माने में तिरा ग़म हूँ ब-उनवान-ए-वफ़ा

ज़िंदगी मेरी सही है तिरी रुस्वाई भी

आज तू ने भी मिरे हाल से मुँह फेर लिया

आज नम-नाक हुई चश्म-ए-तमाशाई भी

अब खुला है कि तिरा हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल था करम

गरचे कुछ देर तबीअत मिरी घबराई भी

जुज़-ग़म-ए-दहर मुझे कोई न पहचान सका

तिरे कूचे में तिरी याद मुझे लाई भी

उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं

वो जो कल कहते थे दीवाना भी सौदाई भी

(1046) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi In Hindi By Famous Poet Yusuf Zafar. Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi is written by Yusuf Zafar. Complete Poem Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi in Hindi by Yusuf Zafar. Download free Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi Poem for Youth in PDF. Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi is a Poem on Inspiration for young students. Share Hai Gulu-gir Bahut Raat Ki Pahnai Bhi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.