देखा तो ज़िंदगी में बहुत कामयाब थे
सोचा तो जीत आई नज़र मात की तरह
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इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे
पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे
हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है
हाल कुछ अब के जुदा है तिरे दीवानों का
ख़ुद-फ़रेबी
उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
घुटी घुटी ही सही मेरी चाह ले लेना
बे-सदा क्यूँ गुज़रते हो आवाज़ दो
इंतिबाह
दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा
वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था