हाल कुछ अब के जुदा है तिरे दीवानों का
हाल कुछ अब के जुदा है तिरे दीवानों का
शहर में ढेर न लग जाए गरेबानों का
ये मिरा ज़ब्त है या तेरी अदा की तहज़ीब
रंग आँखों में झलकता नहीं अरमानों का
मय-कदे के यही आदाब हैं रिंदो सुन लो
ग़म नहीं करते हैं टूटे हुए पैमानों का
साँस लेने को कोई और ठिकाना ढूँडो
शहर जंगल सा हुआ जाता है इंसानों का
अब हक़ीक़त की तहों तक कोई कैसे पहोंचे
एक तूफ़ान बपा है यहाँ अफ़्सानों का
(950) Peoples Rate This