Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ddb70bdf9451fcee6bdd628db98930c3, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा - यूसुफ़ तक़ी कविता - Darsaal

दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा

दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा

जब कभी कमरे में मैं तन्हा रहा

उम्र की नद्दी चढ़ी, उतरी, गई

जिस्म का सहरा मगर जलता रहा

दिन को तपती फ़ाइलों की रेत पर

मैं तो अबरक़ की तरह बिखरा रहा

रात भर इक जिस्म की दीवार से

मैं कैलन्डर की तरह चिपका रहा

शब पलंग पर हाँपते साए रहे

ख़्वाब दरवाज़े खड़ा तकता रहा

याद की डिब्बी में क्यूँ रक्खो मुझे

मैं जली तीली हूँ, मुझ में क्या रहा

(885) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha In Hindi By Famous Poet Yusuf Taqi. Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha is written by Yusuf Taqi. Complete Poem Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha in Hindi by Yusuf Taqi. Download free Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha Poem for Youth in PDF. Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha is a Poem on Inspiration for young students. Share Dard Ki KHushbu Se Ye Mahka Raha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.