मज़हब-ए-इंसानियत
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब मिल कर इक गीत लिखेंगे
गीत की धुन पर अहद करेंगे
सारी नफ़रत भूल के हम इक हो जाएँगे
इक दूजे के दुखड़ों में हम खो जाएँगे
तुम भी इंसाँ हम भी इंसाँ
प्यार ही है हम सब का ईमाँ
नया मज़हब तश्कील करेंगे
अब न कोई बुत हम पूजेंगे
जग में इंसाँ-राज रहेगा
यक-जेहती का ताज रहेगा
आओ मिल कर गीत लिखें हम
गीत की धुन पर अहद करें हम
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