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उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी - युसूफ़ जमाल कविता - Darsaal

उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी

उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी

ख़ला में सदाओं की बंदिश है कैसी

निहाँ मुझ में है और मेरे बदन का

लहू चाटती है जो ख़्वाहिश है कैसी

मुझे मुस्कुराने की किस ने सज़ा दी

मिरी ज़ात पर ये नवाज़िश है कैसी

मिली ख़ुशबुओं के जज़ीरे की दावत

मुझे फिर रुलाने की साज़िश है कैसी

मुक़द्दर में है जब हमारे अँधेरे

नज़र में सराबी सी ताबिश है कैसी

नगर है ये फूलों का तो फिर यहाँ पर

चटानें उगाने की काविश है कैसी

बहुत शाद आबाद रखना था उस को

ज़मीन पर लहू की ये बारिश है कैसी

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