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लग़्ज़िशें तन्हाइयों की सब बता दी जाएँगी - युसूफ़ जमाल कविता - Darsaal

लग़्ज़िशें तन्हाइयों की सब बता दी जाएँगी

लग़्ज़िशें तन्हाइयों की सब बता दी जाएँगी

रंगतें चेहरों की इस सूरत उड़ा दी जाएँगी

ख़ुश्क पेड़ों पर नए मौसम उगाने के लिए

ज़र्द पत्तों की ये तहरीरें मिटा दी जाएँगी

क़हत नींदों का पड़ेगा चाहतों के खेत में

ख़्वाब की फ़सलें अगर सारी जला दी जाएगी

इन सराबों में मुक़य्यद मुझ से क़ैदी के लिए

क्या फ़सीलें रेत की ऊँची उठा दी जाएँगी

फिर समुंदर के मकानों का भी लेंगे जाएज़ा

सीढ़ियाँ पानी की तह तक जब बना दी जाएँगी

क्या ख़बर थी शक की ख़ातिर दोस्ती के नाम पर

आज अपनी आस्तीनें भी दिखा दी जाएँगी

जाएज़ा जब मेरे घर का लेने वो आए 'जमाल'

टूटी फूटी हांडियाँ भी खंखना दी जाएँगी

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