Ghazals of Yusuf Jamal
नाम | युसूफ़ जमाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Yusuf Jamal |
ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था
उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी
सोचा कि वा हो सब्ज़ दरीचा जो बंद था
सारा बदन है ख़ून से क्यूँ तर उसे दिखा
सर पर दुख का ताज सुहाना लगता है
लग़्ज़िशें तन्हाइयों की सब बता दी जाएँगी
कोरे काग़ज़ की तरह बे-नूर बाबों में रहा
हम रिवायत के साँचे में ढलते भी हैं