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रू-ब-रू हैं वो देखता क्या है - यूनुस ग़ाज़ी कविता - Darsaal

रू-ब-रू हैं वो देखता क्या है

रू-ब-रू हैं वो देखता क्या है

हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है

है वफ़ा दिल में या जफ़ा क्या है

साफ़ कहिए कि माजरा क्या है

उन को भूले हुए ज़माना हुआ

फिर ये पहलू में दर्द सा क्या है

हैं भिकारी सभी तिरे दर के

शाह क्या चीज़ है गदा क्या है

मेरी रुस्वाई-ए-जहाँ के सिवा

तेरी शोहरत में और क्या क्या है

आबरू दर्द-ए-दिल की बढ़ जाए

जब वो पूछें तुम्हें हुआ क्या है

उन की आँखों में झाँक कर देखूँ

मेरी तक़दीर में लिखा क्या है

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