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पास होते हुए जुदा क्यूँ है - यूनुस ग़ाज़ी कविता - Darsaal

पास होते हुए जुदा क्यूँ है

पास होते हुए जुदा क्यूँ है

इस क़दर हम से वो ख़फ़ा क्यूँ है

तौबा कर ली जब उस ने पीने से

जानिब-ए-मय-कदा गया क्यूँ है

निकहत-ए-गुल चमन में है मौजूद

जाने आवारा फिर सबा क्यूँ है

मुझ पे जौर-ओ-सितम ही अच्छे थे

मेहरबाँ अब वो बेवफ़ा क्यूँ है

हैं सभी पर तुम्हारे मेहर-ओ-करम

मुझ पे लेकिन सितम रवा क्यूँ है

ज़ुल्फ़ बिखरी है शाम से पहले

ये अदा क्या है ये अदा क्यूँ है

तालिब-ए-दीद कब से है 'ग़ाज़ी'

वो हिजाबात में छुपा क्यूँ है

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