दर्द हद से सिवा दिया तू ने
दर्द हद से सिवा दिया तू ने
मेरा रुत्बा बढ़ा दिया तू ने
दर्द-ओ-ग़म ही सही ख़ुशी न सही
मुझ को जो कुछ दिया दिया तू ने
राहत-अफ़ज़ा लगा मुझे हर ग़म
दर्द ऐसा जगा दिया तू ने
नाम दे कर ग़म-ए-मोहब्बत का
क्यूँ फ़साना बना दिया तू ने
दिल में आया तो इस तरह आया
दिल से सब कुछ भुला दिया तू ने
जिस की हसरत कलीम रखते थे
मुझ को वो भी दिखा दिया तू ने
जुगनुओं ही पे थी नज़र मेरी
मुझ को सूरज बना दिया तू ने
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