चुप रहूँ कैसे मैं बर्बाद-ए-जहाँ होने तक
चुप रहूँ कैसे मैं बर्बाद-ए-जहाँ होने तक
राज़ को राज़ ही रखना है बैय्याँ होने तक
क्या ख़बर थी तिरी महफ़िल में ये हालत होगी
तू उठा देगा मुझे दर्द अयाँ होने तक
ख़ुश-नसीबी ये मिरी है कि वो घर आए हैं
शम्अ' तू साथ निभा वक़्त-ए-अज़ाँ होने तक
कोई ख़ामोश सदा दूर बुलाती है मुझे
काश मैं ज़िंदा रहूँ दर्द बयाँ होने तक
एक शो'ला है मोहब्बत उसे शबनम न कहो
ज़िंदा रहती है ये बद-बख़्त धुआँ होने तक
तुम भी 'ग़ाज़ी' कभी फ़ुर्सत में ये सोचो तो सही
क्यूँ तड़पते हो हर इक शब के जवाँ होने तक
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