बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है
बताऊँ मैं तुम्हें आँखों में आँसू या लहू क्या है
कभी ऐ काश तुम पूछो कि मेरी आरज़ू क्या है
मैं तेरी आहटें पाता हूँ कलियों के चटकने में
गुलिस्ताँ में ब-जुज़ जल्वों के तेरे रंग-ओ-बू क्या है
उसी को दर्द कहता है उसी को दर्द का दरमाँ
नहीं ये इश्क़ तो ऐ दिल बता फिर जुस्तुजू क्या है
सफ़ाई पेश करते हो जो अपनी तौबा-शिकनी की
बताओ फिर तुम्हारे हाथ में जाम-ओ-सुबू क्या है
दर-ए-का'बा हो पा-ए-नाज़ हो सर रख दिया हम ने
कहाँ ये शौक़-ए-सज्दा देखता है रू-ब-रू क्या है
मुझे भी आख़िरश तस्लीम तो इक रोज़ करना है
अगर कुछ भी नहीं हूँ मैं तो फिर ये तू ही तू क्या है
ज़माने में तो 'ग़ाज़ी' नाम है मशहूर इक बे-शक
मगर ख़ुद की नज़र में पूछिए कि आबरू क्या है
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