सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम
सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम
तारीकियों में फिर भी उतारे गए हैं हम
रास आ सकी न हम को हवा तेरे शहर की
यूँ तो क़दम क़दम पे सँवारे गए हैं हम
कुछ क़हक़हों के अब्र-ए-रवाँ ने दिया निखार
कुछ ग़म की धूप से भी निखारे गए हैं हम
साहिल से राब्ता हैं नहीं टूटता कभी
कैसे समुंदरों में उतारे गए हैं हम
टूटा न राह-ए-शौक़ में अफ़्सून-ए-तीरगी
ले कर जिलौ में चाँद सितारे गए हैं हम
जाना मुहाल था तिरी महफ़िल को छोड़ कर
पा कर तिरी नज़र के इशारे गए हैं हम
इस तीरा ख़ाक-दाँ में कोई पूछता नहीं
कहने को आसमाँ से उतारे गए हैं हम
सौ बार बार-ए-ग़म ने परेशाँ किया हमें
सौ बार मिस्ल-ए-ज़ुल्फ़ सँवारे गए हैं हम
इस सिलसिले में मौत तो बदनाम है यूँही
इस ज़िंदगी के हाथों ही मारे गए हैं हम
गिर्दाब-ए-ग़म में डूब के उभरे हैं बारहा
किस ने कहा किनारे किनारे गए हैं हम
'यज़्दानी'-ए-हजीं हमें कुछ भी ख़बर नहीं
उस आस्ताँ पे किस के सहारे गए हैं हम
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