लबों तक आया ज़बाँ से मगर कहा न गया
लबों तक आया ज़बाँ से मगर कहा न गया
फ़साना दर्द का अल-मुख़्तसर कहा न गया
हरीम-ए-नाज़ में क्या बात थी जो राज़ रही
वो हर्फ़ क्या था जो बार-ए-दिगर कहा न गया
ये हादसा भी अजब है कि तेरे ग़म के सिवा
किसी भी ग़म को ग़म-ए-मो'तबर कहा न गया
नफ़स नफ़स में था एहसास-ए-ख़ाना-वीरानी
ख़राबा-ए-ग़म-ए-हस्ती को घर कहा न गया
तलाश करता हूँ ईमा-ए-इल्तिफ़ात अभी
वो क्या नज़र थी कि जिस को नज़र कहा न गया
जुनूँ ने फ़िक्र-ओ-नज़र को वो रिफ़अतें बख़्शीं
ख़िरद को हम से कभी दीदा-वर कहा न गया
न कोई शोर न ग़ौग़ा न हाव-हू न ख़रोश
ख़िज़ाँ को मौसम-ए-देरीना-गर कहा न गया
दिल इज़्तिराब-ए-गुज़ारिश का महशरिसताँ था
किसी के सामने कुछ भी मगर कहा न गया
(1065) Peoples Rate This