जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह
जल्वा अफ़रोज़ है कअ'बे के उजालों की तरह
दिल की ता'मीर कि कल तक थी शिवालों की तरह
अक़्ल-ए-वारफ़्ता के बे-नूर बयाबानों में
हम भटकते रहे आवारा ख़यालों की तरह
हम कि इस बज़्म में हैं साया-ए-ग़म की सूरत
कौन देखेगा हमें ज़ोहरा-जमालों की तरह
हाथ बढ़ता नहीं रिंदों का हमारी जानिब
हम ख़राबात में हैं ख़ाली प्यालों की तरह
जब कोई ख़ार-ए-सितम दिल में उतर आता है
फूट कर रोता है दिल पाँव के छालों की तरह
जब भी पढ़ता हूँ किताब-ए-ग़म-ए-हस्ती ऐ दिल
तज़्किरा उन का भी मिलता है हवालों की तरह
सोज़-ओ-एहसास की तस्वीर है क़ल्ब-ए-शाएर
नग़्मे तख़्लीक़ हुआ करते हैं नालों की तरह
अरसा-ए-दहर में की हम ने बसर 'यज़्दानी'
ज़ुल्मत-ए-शब की तरह दिन के उजालों की तरह
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