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जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं - यज़दानी जालंधरी कविता - Darsaal

जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं

जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं

बड़े दिलचस्प अफ़्साने बने हैं

हक़ीक़त कुछ तो होती है यक़ीनन

कहीं झूटे भी अफ़्साने बने हैं

बहुत नाज़ाँ थे जो फ़र्ज़ानगी पर

उन्हें देखा तो दीवाने बने हैं

कि अंदाज़-ए-नज़र की आज़री से

दिलों में कितने बुत-ख़ाने बने हैं

जो शोअ'ला शम्अ' के दिल में है रौशन

उसी शोले से परवाने बने हैं

ये किस साक़ी का फ़ैज़ान-ए-नज़र है

चमन में फूल पैमाने बने हैं

क़यामत था मिरा महफ़िल से उठना

न जाने कितने अफ़्साने बने हैं

मिरी दीवानगी पर हँसने वाले

ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश फ़रज़ाने बने हैं

जली हैं ज़ेहन में यादों की शमएँ

तसव्वुर में सनम-ख़ाने बने हैं

ब-नाम-ए-ग़म ब-उनवान-ए-मोहब्बत

जुनूँ-अफ़रोज़ अफ़्साने बने हैं

ज़माने से हो 'यज़्दानी' गिला क्या

कि जो अपने थे बेगाने बने हैं

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