Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_e98c516f60c94f541ec8af1266cbd766, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा - यज़दानी जालंधरी कविता - Darsaal

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

दोस्त बिछड़ा है हर इक गाम पे कैसा कैसा

दिल का आतिश-कदा वीरान पड़ा था कब से

आँख से बहने लगा आग का दरिया कैसा

उस पे तो फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ मार चुकी है शब-ख़ूँ

मौसम-ए-गुल के गुज़र जाने का खटका कैसा

चाँद से चेहरे नज़र आने लगे हैं कितने

खुल गया मेरी निगाहों पे दरीचा कैसा

जिस में इक अश्क न हो आँख कहाँ है वो आँख

बूँद पानी की न हो जिस में वो दरिया कैसा

बे-तहाशा जो बढ़ी जाती है सू-ए-गिर्दाब

नाव ने देख लिया उस में किनारा कैसा

देख महफ़िल में हर इक आँख है नम 'यज़्दानी'

तू ने ये छेड़ दिया आज फ़साना कैसा

(1059) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa In Hindi By Famous Poet Yazdani Jalandhari. Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa is written by Yazdani Jalandhari. Complete Poem Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa in Hindi by Yazdani Jalandhari. Download free Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa Poem for Youth in PDF. Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa is a Poem on Inspiration for young students. Share Jada-e-zist Pe Barpa Hai Tamasha Kaisa with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.