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हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं - यासमीन हमीद कविता - Darsaal

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

सो हम भी डूब गए और उसे पुकारा नहीं

ख़ुद आफ़्ताब मिरी राह का चराग़ बने

मगर ये बात मिरे चाँद को गवारा नहीं

जो उस में उतरी तो तूफ़ान ही मिलेंगे मुझे

मैं जानती हूँ कि वो मौज है किनारा नहीं

अजब फ़ज़ा है कि रंग-ए-नुमूद-ए-सुब्ह भी है

सियाह रात ने भी पैरहन उतारा नहीं

वजूद जिस को किसी मो'तबर शजर ने दिया

हवा की ज़द में भी तिनका वो बे-सहारा नहीं

जलेगा ख़ुद भी सहर तक मुझे भी लौ देगा

चराग़-ए-शाम कोई बख़्त का सितारा नहीं

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