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वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ - यासमीन हबीब कविता - Darsaal

वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ

वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ

तारा तारा गिना है उम्र के साथ

कितना आसान सा तअल्लुक़ था

कितना मुश्किल हुआ है उम्र के साथ

फिर सफ़र नाम है अज़िय्यत का

रास्ता हाँफता है उम्र के साथ

किस की आँखों को नींद चुभती है

कौन जागा रहा है उम्र के साथ

जाने आराम आएगा कब तक

दर्द बढ़ने लगा है उम्र के साथ

इक गुनह था छुपाए रक्खा था

सामने आ गया है उम्र के साथ

ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं लगती

कोई धोका हुआ है उम्र के साथ

सुब्ह-ए-काज़िब से शाम-ए-सादिक़ तक

एक महशर बपा है उम्र के साथ

कैसा चेहरा है रात की तफ़्सील

कौन जल कर बुझा है उम्र के साथ

गर्द-ए-माज़ी है वस्ल का हासिल

क़ाफ़िला हिज्र का है उम्र के साथ

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