याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह
याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह
काफ़िर बने न हम न मुसलमाँ किसी तरह
करते हो वा'दा आने का है आँख मुंतज़र
कब तक गुज़ारे दिन ये है मेहमाँ किसी तरह
आज़ाद इश्क़-ए-यार ने हम को बना दिया
माल-ओ-मता' का हूँ न मैं ख़्वाहाँ किसी तरह
पीते रहो शराब जहाँ तक कि हो सके
शाग़िल न छूटे साक़ी का दामाँ किसी तरह
आ जावें गर नसीब से आलम है नज़्अ' का
निकले हमारे दिल के भी अरमाँ किसी तरह
मर जाऊँ उन के तीर-ए-निगह से नजात हो
गर्दन पे मेरे उन का हो एहसाँ किसी तरह
ज़िंदाँ हैं फँस गया दिल-ए-मुज़्तर निगाह के
बैठे हैं पासबाँ बने मिज़्गाँ किसी तरह
बअ'द-ए-फ़ना भी क़ब्र को मिस्मार कर दिया
इज़हार-ए-रंज का न हो सामाँ किसी तरह
अदवार में अगरचे है 'मरकज़' घिरा हुआ
छोड़े न तुझ को रहमत सुब्हाँ किसी तरह
(983) Peoples Rate This