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शिर्क का पर्दा उठाया यार ने - यासीन अली ख़ाँ मरकज़ कविता - Darsaal

शिर्क का पर्दा उठाया यार ने

शिर्क का पर्दा उठाया यार ने

हम को जब अपना बनाया यार ने

रोज़-ए-रौशन की तरह देखा उसे

गरचे मुँह अपना छुपाया यार ने

ज़ाहिरन मौजूद है हर शान से

हर तरह रुख़ को दिखाया यार ने

ख़्वेश-ओ-बेगाना फ़क़त कहने को है

अपना दीवाना बनाया यार ने

बंदा बिन जाना फ़क़त छुपने को है

घर को वीराना बनाया यार ने

फेर गर्दूं से है सूरत हर तरह

जिस्म का शाना बनाया यार ने

तू वो 'मरकज़' है ख़ुदाई का ज़ुहूर

ख़त्त-ए-फ़ासिल को बनाया यार ने

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