जो नज़र किया मैं सिफ़ात में हुआ मुझ पे कब ये अयाँ नहीं
जो नज़र किया मैं सिफ़ात में हुआ मुझ पे कब ये अयाँ नहीं
मिरी ज़ात ऐन की ऐन है वहाँ दूसरी का निशाँ नहीं
वही दो जहाँ में है मुफ़्तख़र जैसे ऐनियत की हुई ख़बर
वही हुक्मराँ है जहान में वहाँ कुफ़्र-ओ-दीं का गुमाँ नहीं
रहे ग़ैरियत के हिजाब में जो ख़ुदा-नुमा से नहीं मिले
जो ख़ुदा को उन से तलब किए रही बात उन पे निहाँ नहीं
जिसे हो सुबूत वजूद का वही हक़-शनास है बा-ख़बर
उन्हें जुमला आवे ख़ुदा नज़र वो ख़ुदा को देखे कहाँ नहीं
मैं वतन में आप सफ़र किया जो क़दम को अपनी नज़र किया
मिला अपना आप पता मुझे जहाँ ग़ैरियत का बयाँ नहीं
मैं तो एक 'मरकज़'-ए-दहर हूँ जो ख़ुदा-नुमा के निशान से
जो बताऊँ हक़ का पता जिसे रहे बाक़ी उस को गुमाँ नहीं
(997) Peoples Rate This