लबों से आश्नाई दे रहा है

लबों से आश्नाई दे रहा है

वो लज़्ज़त इंतिहाई दे रहा है

मोहब्बत भी हुई कार-ए-मशक़्क़त

बदन थक कर दुहाई दे रहा है

चुराता है बदन मुझ से निगाहें

मुझे दिल भी सफ़ाई दे रहा है

कोई भर देगा अपनी क़ुर्बतों से

कोई ज़ख़्म-ए-जुदाई दे रहा है

कोई तो है जो इतनी सर्दियों में

बदन जैसी रज़ाई दे रहा है

कोई मुझ को 'यशब' अपनी रज़ा से

ख़ज़ानों तक रसाई दे रहा है

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