ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

ख़्वाब ता'बीर में बदलता है

उस में लेकिन ज़माना लगता है

जब उसे चाहतें मयस्सर हों

ख़ुद-बख़ुद आदमी बदलता है

पहले ये दिल कहाँ धड़कता था

अब हर इक बात पर धड़कता है

हाँ मिरी ख़्वाहिशें ज़ियादा हैं

हाँ वो इस बात को समझता है

सर-ब-सर वस्ल की तमन्ना में

वो बदन रूह में उतरता है

रात भी बन-सँवर के आती है

दिन भी उतरा के अब निकलता है

हो के सैद-ए-ग़म-ए-जहाँ ये खुला

ग़म से इक रास्ता निकलता है

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