दर्द की लहर थी गुज़र भी गई
उस के हमराह चश्म-ए-तर भी गई
इक तअ'ल्लुक़ सा था सो ख़त्म हुआ
बात थी ज़ेहन से उतर भी गई
हम अभी सोच ही में बैठे हैं
और वो आँख काम कर भी गई
हिज्र से कम न थी विसाल की रुत
आई बेचैन सी गुज़र भी गई
ज़ब्त का हौसला बहुत था मगर
उस ने पूछा तो आँख भर भी गई