मुमकिन है अश्क बन के रहूँ चश्म-ए-यार में
मुमकिन है भूल जाए ग़म-ए-रोज़गार में
Wasi Shah
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1018) Peoples Rate This
ज़ंजीर ज़ुल्फ़-ए-सियाह समुंदर निगाह-ए-शोख़
किस से करूँ मैं अपनी तबाही का अब गिला
ख़ुदा-रा आ के मिरी लो ख़बर कहाँ हो तुम
मुद्दत हुई है दस्त-ओ-गरेबाँ हुए हमें
हर आँख इक सवाल तही-दस्त के लिए
कुछ वक़्त अपने साथ गुज़ारूँगा मैं 'ज़मीर'