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करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना - यासीन क़ुदरत कविता - Darsaal

करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना

करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना

तअ'ल्लुक़ात वो जैसे भी हों सदा रखना

कुछ इस तरह की हिदायत मिली है अब के मुझे

कि सर पे क़हर भी टूटें तो दिल बड़ा रखना

न आँसुओं की रवाँ नहर आँख से करना

अब उस की याद भी आए तो हौसला रखना

किसे मिला है मिलेगा किसे मुराद का फल

सो ग़ाएबाना नवाज़िश की आस क्या रखना

अजब नहीं कि वरूद-ए-हबीब हो जाए

ज़माना तंग-नज़र है तो दिल खुला रखना

जो दोस्ती के लिए बे-क़रार रहता है

वो कोई चाल न चल जाए फिर पता रखना

सितारा अर्श से टूटेगा एक फ़र्श की सम्त

तुम अपना घर दर-ओ-दीवार तक सजा रखना

वफ़ा-शिआ'र भी क़ुदरत था रूठने वाला

रवायतन भी न नाम इस का बेवफ़ा रखना

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