सुख़न को बे-हिसी की क़ैद से बाहर निकालूँ

सुख़न को बे-हिसी की क़ैद से बाहर निकालूँ

तुम्हारी दीद का कोई नया मंज़र निकालूँ

ये बे-मसरफ़ सी शय हर गाम आड़े आने वाली

अना की केंचुली को जिस्म से बाहर निकालूँ

तिलिस्मी मारके कहते हैं अब सर हो चुके हैं

ज़रा ज़म्बील के कोने से मैं भी सर निकालूँ

लहू महका तो सारा शहर पागल हो गया है

मैं किस सफ़ से उठूँ किस के लिए ख़ंजर निकालूँ

बस अब तो मुंजमिद ज़ेहनों की 'यावर' बर्फ़ पिघले

कहाँ तक अपनी इस्तेदाद के जौहर निकालूँ

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SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun In Hindi By Famous Poet Yaqoob Yawar. SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun is written by Yaqoob Yawar. Complete Poem SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun in Hindi by Yaqoob Yawar. Download free SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun Poem for Youth in PDF. SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun is a Poem on Inspiration for young students. Share SuKHan Ko Be-hisi Ki Qaid Se Bahar Nikalun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.