रौशनी मेरे चराग़ों की धरी रहना थी

रौशनी मेरे चराग़ों की धरी रहना थी

फिर भी सूरज से मिरी हम-सफ़री रहना थी

मौसम-ए-दीद में इक सब्ज़-परी का साया

अब गिला क्या कि तबीअत तो हरी रहना थी

मैं कि हूँ आदम-ए-आज़िम की रिवायत का नक़ीब

मेरी शोख़ी सबब-ए-दर-ब-दरी रहना थी

ख़्वाब इरफ़ान-ए-हक़ीक़त के तमन्नाई थे

ज़िंदगी और मिरी राहबरी रहना थी

आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहाल

नख़्ल-ए-ख़्वाहिश पे वही बे-समरी रहना थी

साज़-ओ-सामान-ए-तअय्युश तो बहुत थे 'यावर'

अपने हिस्से में यही हर्फ़-गरी रहना थी

(1040) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi In Hindi By Famous Poet Yaqoob Yawar. Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi is written by Yaqoob Yawar. Complete Poem Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi in Hindi by Yaqoob Yawar. Download free Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi Poem for Youth in PDF. Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Raushni Mere Charaghon Ki Dhari Rahna Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.