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वो कौन से ख़तरे हैं जो गुलशन में नहीं हैं - याक़ूब उस्मानी कविता - Darsaal

वो कौन से ख़तरे हैं जो गुलशन में नहीं हैं

वो कौन से ख़तरे हैं जो गुलशन में नहीं हैं

हम मौत के मुँह में हैं नशेमन में नहीं हैं

ये जश्न-ए-तरब और ये बे-रंगी-ए-महफ़िल

दो फूल भी क्या वक़्त के दामन में नहीं हैं

छुप छुप के किसे बर्क़-ए-हवस ढूँढ रही है

गिनती के वो ख़ोशे भी तो ख़िर्मन में नहीं हैं

इमरोज़ के दिखते हुए दिल की मैं सदा हूँ

दीरोज़ के नौहे मिरे शेवन में नहीं हैं

चाक-ए-जिगर ऐ दस्त-ए-करम सी तो रहा है

गिर्हें तो कहीं रिश्ता-ए-सोज़न में नहीं हैं

मजबूर अब इतना भी असीरों को न समझो

ऐसे भी हैं कुछ तौक़ जो गर्दन में नहीं हैं

रंग-ए-निगह-ए-शौक़ भरे कौन चमन में

तिनके भी तो 'याक़ूब' नशेमन में नहीं हैं

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