Ghazals of Yaqoob Usmani
नाम | याक़ूब उस्मानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Yaqoob Usmani |
ज़बाँ कुछ और कहती है नज़र कुछ और कहती है
वो कौन से ख़तरे हैं जो गुलशन में नहीं हैं
उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है
तूफ़ाँ की ज़द पे अपना सफ़ीना जब आ गया
तज़ाद अच्छा नहीं तर्ज़-ए-बयाँ का हम ज़बानों में
शौक़ की कम-निगही भी है गवारा मुझ को
सब्र ख़ुद उकता गया अच्छा हुआ
निगाह-ए-बद-गुमाँ है और मैं हूँ
मज़ाक़-ए-काविश-ए-पिन्हाँ अब इतना आम क्या होगा
मैं चाहूँ भी तो ज़ब्त-ए-गुफ़्तुगू मैं ला नहीं सकता
ख़ुश-फ़हमियों को ग़ौर का यारा नहीं रहा
करम के इस दौर-ए-इम्तिहाँ से वो दौर-ए-मश्क़-ए-सितम ही अच्छा
हल ही न हो जिस का वो मुअम्मा तो नहीं है
चाहती है आख़िर क्या आगही ख़ुदा-मालूम