दाग़-हा-ए-दिल की ताबानी गई
दाग़-हा-ए-दिल की ताबानी गई
उन के जल्वों की फ़रावानी गई
आश्ना ना-आश्ना से हो गए
अपनी सूरत भी न पहचानी गई
एक दिल में सैकड़ों ग़म का हुजूम
फिर भी उस घर की न वीरानी गई
अब कहाँ वो जज़्बा-ए-महर-ओ-वफ़ा
आदमी से ख़ू-ए-इंसानी गई
आईने में वक़्त के ऐ हम-नफ़स
दोस्तों की शक्ल पहचानी गई
रह गए होश-ओ-ख़िरद के फ़लसफ़े
जुस्तुजू ता-हद्द-ए-इमकानी गई
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' 'वहशत'-ओ-'दाग़'-ओ-'जिगर'
क्या गए 'आसी' ग़ज़ल-ख़्वानी गई
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