ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
अगर पीवे कोई उन को तो जल कर ख़ाक हो जावे
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उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ
सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ