उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
नाला मशहूर ग़लत है कि असर करता है
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शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते
चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
हक़ मुझे बातिल-आश्ना न करे
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था