दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
किसी दुश्मन को मुब्तला न करे
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सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद
शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
हक़ मुझे बातिल-आशना न करे
चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है