हक़ मुझे बातिल-आशना न करे
मैं बुतों से फिरूँ ख़ुदा न करे
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
किसी दुश्मन को मुब्तला न करे
है वो मक़्तूल काफ़िर-ए-नेमत
अपने क़ातिल को जो दुआ न करे
रू मिरे को ख़ुदा क़यामत तक
पुश्त-ए-पा से तिरी जुदा न करे
नासेहो ये भी कुछ नसीहत है
कि 'यक़ीं' यार से वफ़ा न करे