इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
नाम | इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन |
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अंग्रेज़ी नाम | Yaqeen Inamullah Khan |
जन्म की तारीख | 1727 |
मौत की तिथि | 1755 |
जन्म स्थान | Delhi |
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद
ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने
इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं
हक़ मुझे बातिल-आश्ना न करे
दोस्ती बद बला है इस में ख़ुदा
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है
उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ
शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था
पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम
नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा
मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ
कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था
हक़ मुझे बातिल-आशना न करे
चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है
बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते
अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है