बहस तो अपनी है ही नहीं ताक़त वालों से
सारे दावे उन के अलग हैं अपनी दलीलें अलग सी हैं
वो कहते हैं उन का क़हर क़यामत बन कर कड़केगा
हम कहते हैं मौत का खेल हमें जी जान से प्यारा है
और इस खेल के होते हुए
बस्ती में उजयारा है
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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शब के सब असरार तुम्हारे
बाग़ों में आएगी कब बहार
बहस तो अपनी ही नहीं
जिस्म और साए
ख़ुदा गवाह