बाग़ों में आएगी कब बहार
नौहे लिखते लिखते ये दिल थक जाता है
बिखरे हुए हैं सब दिल वाले
हम मतवाले तन्हा हैं
रौशनियों के बेटे तारीकी में आ कर चमकें
हम राहों में तय्यार मिलेंगे
जो यलग़ार यहाँ भी होगी
हम अपने ख़ूँ के फ़व्वारों को आम करेंगे
एक चराग़ाँ कूचा-ए-रुस्वाई में
इक बाला-ए-बाम करेंगे
उन रोज़ों में ये दिल थक कर सो भी चुके तो
हम ख़ुश होंगे
बादल के तकिए पे बहुत आराम करेंगे
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