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ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है - यगाना चंगेज़ी कविता - Darsaal

ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है

ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है

यही जानता है तो क्या जानता है

इसी में दिल अपना भला जानता है

कि इक नाख़ुदा को ख़ुदा जानता है

वो क्यूँ सर खपाए तिरी जुस्तुजू में

जो अंजाम-ए-फ़िक्र-ए-रसा जानता है

ख़ुदा ऐसे बंदे से क्यूँ फिर न जाए

जो बैठा दुआ माँगना जानता है

ज़हे सहव-ए-कातिब कि सारा ज़माना

मुझी को सरापा ख़ता जानता है

अनोखा गुनहगार ये सादा इंसाँ

नविश्ते को अपना किया जानता है

'यगाना' तू ही जाने अपनी हक़ीक़त

तुझे कौन तेरे सिवा जानता है

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