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सलामत रहें दिल में घर करने वाले - यगाना चंगेज़ी कविता - Darsaal

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

इस उजड़े मकाँ में बसर करने वाले

गले पर छुरी क्यूँ नहीं फेर देते

असीरों को बे-बाल-ओ-पर करने वाले

अंधेरे उजाले कहीं तो मिलेंगे

वतन से हमें दर-ब-दर करने वाले

गरेबाँ में मुँह डाल कर ख़ुद तो देखें

बुराई पे मेरी नज़र करने वाले

इस आईना-ख़ाने में क्या सर उठाते

हक़ीक़त पर अपनी नज़र करने वाले

बहार-ए-दो-रोज़ा से दिल क्या बहलता

ख़बर कर चुके थे ख़बर करने वाले

खड़े हैं दो-राहे पे दैर ओ हरम के

तिरी जुस्तुजू में सफ़र करने वाले

सर-ए-शाम गुल हो गई शम-ए-बालीं

सलामत हैं अब तक सहर करने वाले

कुजा सेहन-ए-आलम कुजा कुंज-ए-मरक़द

बसर कर रहे हैं बसर करने वाले

'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं

दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले

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