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क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ - यगाना चंगेज़ी कविता - Darsaal

क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ

क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ

रुख़ दास्तान-ए-ग़म का इधर से उधर हुआ

मातम-सरा-ए-दहर में किस किस को रोइए

ऐ वाए दर्द-ए-दिल न हुआ दर्द-ए-सर हुआ

तस्कीन-ए-दिल को राज़-ए-ख़ुदी पूछता है क्या

कहने को कह दूँ और अगर उल्टा असर हुआ

आज़ाद हो सका न गिरफ़्तार-ए-शश-जहत

दिल मुफ़्त बंदा-ए-हवस-ए-बाल-ओ-पर हुआ

दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ

इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ

फ़र्दा का ध्यान बाँध के कहता है मुझ से दिल

तू मेरी तरह क्यूँ न वसी-उन-नज़र हुआ

फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है

दिल अपना शाम ही से चराग़-ए-सहर हुआ

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