क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
क़िस्सा किताब-ए-उम्र का क्या मुख़्तसर हुआ
रुख़ दास्तान-ए-ग़म का इधर से उधर हुआ
मातम-सरा-ए-दहर में किस किस को रोइए
ऐ वाए दर्द-ए-दिल न हुआ दर्द-ए-सर हुआ
तस्कीन-ए-दिल को राज़-ए-ख़ुदी पूछता है क्या
कहने को कह दूँ और अगर उल्टा असर हुआ
आज़ाद हो सका न गिरफ़्तार-ए-शश-जहत
दिल मुफ़्त बंदा-ए-हवस-ए-बाल-ओ-पर हुआ
दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ
फ़र्दा का ध्यान बाँध के कहता है मुझ से दिल
तू मेरी तरह क्यूँ न वसी-उन-नज़र हुआ
फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
दिल अपना शाम ही से चराग़-ए-सहर हुआ
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