मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
दिल-ए-बे-हौसला है इक ज़रा सी ठेस का मेहमाँ
वो आँसू क्या पिएगा जिस को ग़म खाना नहीं आता
सरापा राज़ हूँ मैं क्या बताऊँ कौन हूँ क्या हूँ
समझता हूँ मगर दुनिया को समझाना नहीं आता
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